वो सुबह कभी तो आएगी : माधुरी बड़थ्वाल

-लोकगीतों और संस्कृति को जीवन समर्पित गढ़वाली मांगल गीतों और राग-रागनियों पर किया है शोध


- सैकेड़ों गीतों की कर रही हैं स्वर लिपि तैयार '


नारी शक्ति सम्मान से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा सम्मानित की गई डा. माधुरी बड़थ्वाल अपने आप में पहाड़ की पूरी संस्कृति प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने पहाड़ की लोक जीवन को जिया भोगा है। आकाशवाणी की पहली संगीत निदेशिका माधुरी ने पहाड़ के अगिनत गायकों को एक मंच दिया यह उनका अनन्य पहाड़ प्रेम ही है कि वो आज गढ़वाली लोकगीतों चौंफला, थड्या आदि गीतों को पीढ़ी को सिखा रही है। उनका कहना है कि यह विरासत है और वह इस लोकगीतों की इस विरासत को अपनी भावी पीढ़ियों को देने का काम कर रही हैं। वह चाहती कि हर हालत में हमारी लोकसंस्कृति को प्रोत्साहन मिले। मांगल गीत पर लिखी गई पुस्तक संस्कार लोकगीत मांगल के बारे में वह कहती हैं कि मांगल गीत सृष्टि के साथ ही परम्परा में आए थे। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की स्तुतियां हैं। मांगल गीतों में प्रकृति सभी गुण मौजूद हैं। अच्छे परिवार की बात कही गई और भोले और पार्वती से अच्छा परिवार तो कोई हो नहीं सकता है। मांगलों में इसी का उल्लेख है। हिमवंत प्रदेश की बात है। मैणावती के घर जन्मी गौराकी बात हैइतिहासकारों से अधिक विश्वसनीय हैं लोकगीत डा. माधुरी बड़थ्वाल के अनुसार इतिहासकारों से अधिक विश्वसनीय हैं हमारे लोकगीत। इसका कारण यह है कि इन लोकगीतों में मंगलकामनाएं हैं और उस दौरान का सुख-दुख है। जबकि इतिहासकारों ने अपनी इच्छा से अधिक राजा की इच्छाओं के अनुसार लेखन कार्य किया है। ऐसे में मैं इतिहासकारों की तुलना अपने लोकसंस्कृति और लोकगीतों पर अधिक विश्वास सम्राट तो घरों में हैं और उनको रोटी के भी लाले हैं लेकिन संस्कृति विभाग को इसकी परवाह नहीं है। लोक संस्कृति बचाने में ग्राम प्रधान की भूमिका माधुरी जी का कहना है कि संस्कृति विभाग को ग्राम प्रधानों से इस बात की जानकारी लेनी चाहिए कि उनके गांव में कौन-कौन से लोक गायक या लोक कलाकार हैं। उनकी क्षमता और योग्यताको संरक्षण देने की जरूरत है। उनके अनुसार सरकार जो कुछ लोक कलाकारों को पेंशन देने का काम करती है वह काफी नहीं है। कलाकारों को संरक्षण और प्रोत्साहन देने की जरूरत है। लोक संस्कृति को हर हाल में प्रोत्साहन मिलना चाहिए। लोक संगीत में आत्मा जुड़ी वह कहती हैं कि लोक संगीत में आत्मा होती है। यही कारण है कि आज भी लोक संगीत को नये गायक अपनाते हैं, लेकिन रिमिक्स के नाम पर। लोक संगीत चूंकि आत्मा से जुड़े होते हैं इसलिए वो पुराने नहीं होते हैं लोक संस्कृति के संरक्षण कई स्कूलों में वह बच्चों को भी लोकसंस्कृति और और उनमें ताजगी बनी रहती है। यही कारण है कि हिन्दी में जटी हैं डा. माधरी संगीत का ज्ञानदे रही हैं। फिल्मों में भी लोकगीतों को प्रमुखता से लिया जाता है डा. माधुरी बड़थ्वाल लोक संस्कृति और आज का संगीत प्रदूषित और जिन फिल्मों में भी लोक संगीत रहा, वो फिल्में लोकगीतों के संरक्षण में जटी हई हैं। उन्होंने सैकड़ों डा. माधुरी बड़थ्वाल का कहना है कि संगीत में कालजयी हो गयी। दया रे दया, हुस्न ये पहाड़ों का आदि लोकगीतों की स्वर लिपि तैयार की हैं। इसके अलावा वो शक्ति है जो सबको जोडेरखती है लेकिन आजसंगीत गाने आज भी दिल को छू जाते हैं। वह कहती हैं कि लोक वह तीन दर्जन महिलाओं को निशुल्क लोक गीत सिखा प्रदूषित हो गया है और इसको प्रदूषण से बचाए जाने की संगीत पौराणिक है और राग-रागनियां सुगम संगीत। रही हैं। स्कली बच्चों को थड्या और चौंफला सिखाती जरूरत है। उनके अनुसार वो सुबह कभी तो आएगी जब उनके अनुसार यदि मूल होगा तभी तो रिमिक्स होगा। हैं।