त्रिवेंद्र चचा, आप बताओ! 158रु प्रतिदिन में कैसे होगी कुपोषण की जंग


- आंगनबाड़ी वर्करों के अपने बच्चे हैं सबसे अधिक कुपोषण के शिकार
- क्या चचा, परेड ग्राउंड में आंदोलनकारी महिलाओं के लिए भी शौचालय नहीं
आज दोपहर परेड ग्राउंड स्थित हिन्दी भवन में पीपुल्स फोरम की बैठक में गया। वापस लौटते समय यहां धरना दे रही चार महिलाओं की खुसर-पुसर सुनी। एक महिला को शौचालय जाना था, लेकिन वहां शौचालय तो हो। उनमें से एक मजाक में कहने लगी कि बैठ जा कहीं पर भी। मुझे बहुत बुरा लगा। एक ओर प्रदेश के ओडीएफ मुफ्त होने का दावा तो दूसरी ओर राजधानी के परेड ग्राउंड के इस धरना स्थल पर दूर-दराज के सीमांत गांवों से आई महिलाओं के लिए कोई सुविधा नहीं। ये महिलाएं आंगनबाड़ी वर्कर हैं, यानी हमारे ग्रामीण समाज की रीढ़। वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर परेड ग्राउंड पर धरना दे रही हैं। प्रदेश भर में साढ़े 37 हजार आंगनबाड़ी वर्कर हैं। कल से उनका क्रमिक अनशन होगा। उत्तरकाशी के नौगांव से आई आंगनबाडी वर्कर सुशीला कंडारी कहती है कि सरकार कुपोषण से लड़ने की बात करती है, लेकिन सबसे अधिक कुपोषित तो हमारे स्वयं के बच्चे हैं। पूरे महीने भर काम करने के बाद महज 4750 रुपये का वेतन मिलता है। वह भी समय पर नहीं। छह महीने काम करने के बाद दो माह का वेतन मिलता है। दुनिया भर के काम उनसे लिए जाते हैं लेकिन वेतन देने के नाम पर कहा जाता है क्यों सुनें इनकी, ये आंगनबाड़ी वर्कर हैं। नरेंद्रनगर से आई गुड्डी देवी के अनुसार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गांव की किसी महिला के गर्भवती होने से लेकर उसकी डिलवरी से लेकर छह साल तक के बच्चे का ध्यान रखती हैं। मतदाताओं का सर्वेक्षण करती हैं। अन्य सरकारी सर्वे भी उनके जिम्मे होती हैं। बीएलओ का काम करती हैं और अब तक पंचायतों का काम भी उनसे ही लिया जा रहा है। चुनाव के समय चुनावी पार्टी के रहने-खाने की व्यवस्था भी उन्हीें की जिम्मेदारी है; लेकिन वेतन छटांक भर मिलता है। मिनी वर्कर को तो मिड-डे मील भी स्वयं बनाना होता है। उसे सहायिका भी नहीं मिलती। आंगनबाड़ी वर्कर को सात हजार और मिनी आंगनबाड़ी वर्कर को 4750 रुपये मिलते हैं। ऐसे में भला गुजर-बसर कैसे हो। वो कहती हैं कि सीएम त्रिवेंद्र रावत ने उन्हें आश्वासन दिया था कि कुछ न कुछ किया जाएगा, लेकिन पिछले दस दिनों में सरकार के किसी भी नुमाइंदे ने उनकी सुध भी नहीं ली है।