सहारा,  माल्या और नीरव का हो एनकाउंटर


-आर्थिक अपराध पर भी हो फांसी की सजा
- हत्या से भी जघन्य अपराध है लोगों को भूखा मारना
अदालतों पर आम आदमी का विश्वास कम हो रहा है, इसका परिणाम हैदराबाद एनकांउटर पर आम जनमानस की खुशी से लगाया जा सकता है। अदालतों को भी सोचना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। सीजेआई बोबड़े ने भले कहा हो कि न्याय बदले से नहीं मिल सकता है। लेकिन सच यह है कि न्याय का गला अदालती चक्करों में ही घुट जाता है। न्याय सस्ता और सुलभ भी नहंी है। ऐसे में हताश जनता क्या करे? इन दिनों भारत भी मंदी की चपेट में है। सुब्रत राय सहारा जैसे जनता के पैसों पर अयाशी करने वाले आरोपी सुब्रत राय की पिछले एक साल से मामले की सुनवाई नहीं हो रही है। अदालत के पास सुब्रत राय के मामले की सुनवाई के लिए वक्त ही नहीं मिला। तीन करोड़ लोगों को ठगने वाला आरोपी खुले आम पैरोल पर घूम रहा है। विजय माल्या राजनीतिक संरक्षण में विदेश भाग गया है। यही हाल नीरव मोदी का है। संसद इनके लिए कोई कड़ा कानून नहीं बनाती है क्योंकि ऐसे ही दगाबाज और जनता को लूटने वाले चुनाव के समय नेताओं को चुनाव लड़ने का पैसा देते हैं। सरकार का तख्ता पलट और विधायक सांसदों की खरीद-फरोख्त के लिए धन देते हैं। सही बात यह है कि दो-चार लोगों की हत्या करने वाले को फांसी हो जाती है लेकिन हजारों, लाखों और करोड़ों लोगों को ठगने वाले लोगों को तिहाड़ में भी एसी रूम दिये जाते हैं। जबकि सुब्रत राय सहारा, नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे अपराधियों का एनकांउटर होना चाहिए या इन्हें आर्थिक अपराध के लिए सजा-ए-मौत होनी चाहिए।