पागल प्रियंका जानवरों का इलाज करती रही जबकि बीमार तो समाज था।


-हस सब चुप हैं क्योंकि हम बीमार हैं।
हैदराबाद में जानवरों की डाक्टर प्रियंका के साथ जो कुछ घटित हुआ वह हमें डराती नहीं है। हम चाय की प्याली के साथ, नाश्ता या डिनर टेबल पर भी इस संबंध में बात करने से कतराते हैं। क्योंकि हम बीमार हैं। इस तरह की पाशविकता के खिलाफ हमारे पास न तो विरोध की शक्ति रही है और न ही हम जोर-जोर से रोते हैं। हम निशब्द हैं। एक साधारण सी नजर इस घटना के समाचारों पर डालते हैं और फिर अपने रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। कारण, क्योंकि हम बीमार हैं और बीमार आदमी सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचता है। हमें अब प्रियकों की चीखें विचलित नहीं करती। हमने अपनी सोच पर चढ़ा दी मोटी गदगदी चादर ताकि कुछ सोच न सकें और दिल पर रखें हैं हमारे पूर्वजों के लाए हुए बड़े-बड़े न उखड़ने वाले पत्थर। हमें प्रियंका की चीख इसलिए नहीं सुनाई देती है कि स्वार्थ और लालसा ने हमारे कानों को अपनी धूल से ढक लिया है। हमारे पास सभी बेतुके तर्क मौजूद हैं। प्रियंका हमारी कौन है? वह तो हैदराबाद रहती थी? पुलिस ने चारों आरोपियों को पकड़ तो लिया? कानून अपना काम करेगा? महिलाओं की सुरक्षा जरूरी है? महिलाओं को रात को घर से नहीं निकलना चाहिए? या उनके साथ हर समय पुरुष होना चाहिए? पुलिस निकम्मी है, कानून कमजोर हैं? कानूनों को और सख्त बनाना चाहिए? शुक्र है यह घटना हमारे साथ नहीं घटी? इस घटना की बात मत करो, मुझे काम पर जाना है। मेरे पास समय नहीं है। मजबूरी है। इस देश में कुछ नहीं होगा? 
ओह प्रियंका, कोई तुम्हारे लिए क्यों रोएगा, क्योंकि तुम ही गलत थी। तुम जानवरों की डाक्टर बन गयी जबकि तुम्हें खूब पता था कि बीमार तो समाज है।