- गढ़वाल का गेटवे है कोटद्वार, अब कण्व नगरी होगा नाम
- समस्याओं की भरमार, नकली और मिलावटी वस्तुओं का गढ़
कोटद्वार यानी गढ़वाल का प्रवेशद्वार। बचपन में जब मैं दिल्ली पढ़ने के लिए गया तो जब कोटद्वार से दिल्ली के लिए बस पकड़ी तो एहसास हुआ कि मेरा पहाड़ छूट गया है। पिछले चार दशक से कोटद्वार से दिल का नाता है। आज भी यह एहसास कचोटता है कि दशक बीत गये लेकिन कोटद्वार बस स्टेशन की स्थिति नहीं बदली। वही जीएमओ का बस अड्डा और वही रोडवेज अड्डा। रेलवे स्टेशन के गेट पर अब भी वैसी ही स्थिति। अंतर यह आया है कि अब दुकानों और ठेलियों का अतिक्रमण बढ़ गया है। झंडा चैक से फलांग भर की दूरी तय करने में कई बार आधा घंटा लग जाता है। इस कोटद्वार का नाम त्रिवेंद्र सरकार बदलने की तैयारी में है। इसे कण्व नगरी नाम दिया जा रहा है जैसा कि प्राचीन काल में कण्वाश्रम था। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नाम बदलने से क्या यहां की तकदीर और तस्वीर बदल जाएगी?
100 साल पहले कोटद्वार की जनसंख्या थी 396
कोटद्वार खोह नदी के तट पर बसा हुआ है। इसके रेलवे से जुड़ने का इतिहास भी काफी पुराना है। यहां 1890 में रेल आ गई थी। 1909 में यह नगर सड़क मार्ग से लैंसीडोन से जुड़ गया था। इसके बाद कोटद्वार से तेजी से पलायन हुआ और बड़ी संख्या में लोग दुगड्डा और आसपास बस गये। इस कारण जब 1921 में जनगणना हुई तो कोटद्वार में कुल 396 लोग थे। अगले दो दशक तक यहां यही स्थिति रही। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यहां का विकास शुरू हुआ और यहां नगर पालिका बनाई गई। कोटद्वार पर्वतीय इलाकों के लिए थोक व्यापार का केंद्र रहा है। अब यहां की आबादी लगभग डेढ़ लाख है और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है।
शराब सबसे बड़ी समस्या
कोटद्वार में इस बार किसी भी डीलर ने शराब का लाइसेंस नहीं लिया। कारण, इसका बेस प्राइज अधिक था। इसका परिणाम यह निकला कि अब घर-घर में अवैध रूप से शराब बिक रही है। शराब के व्यापारी यहां सबलेट करते हैं और इस कारण शाम होते ही कालोनियों और गलियों में शराबियों का जमावड़ा लगने लगता है। इस कारण महिलाओं का घर से बाहर निकलना दूभर हो जाता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस के संरक्षण में अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। उनका सवाल है कि यदि कोटद्वार में देहरादून या हरिद्वार जैसा शराब कांड हो जाता है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?
नकली और मिलावटी वस्तुओं का थोक बाजार
कोटद्वार से पहाड़ों में बड़ी मात्रा में नकली और मिलावटी वस्तुओं की तस्करी होती है। इस पर किसी का अंकुश नहीं है। पूरे गढ़वाल में नकली और मिलावटी वस्तुओं की खपत होती है। यहां तक दूध, दही, घी, पनीर और रसगुल्ले भी सिंथेटिक होते हैं। इस कारण पहाड़ में कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियां पनप रही हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यहां का खाद्य आपूर्ति विभाग सो रहा है। उनका कहना है कि धडल्ले से 500 रुपये में रसगुल्लों का कनस्तर बिकता है। दुकानों पर नकली घी-तेल मिलता है। मिर्च से लेकर अनाजों में भी मिलावट होती है। लेकिन किसी को परवाह नहीं।
कोटद्वार पर मेरी विस्तृत ग्राउंड रिपोर्ट के कुछ अंश
