एनएच-94: विकास के नाम पर बन रही मौत की सड़क


- कोई बताए, 25 मीटर चैड़ी सड़क पर चम्बा कौन जाएगा?
- छद्म राष्ट्रवाद के नाम हम पहाड़ियों ने अपनी आंखों पर गांधारी की तर्ज पर पट्टी बांधी है।
ग्राउंड रिपोर्ट


मेरे पहाड़ के लोगो। भूल गये केदारनाथ वर्ष 2013। 16-17 जून की रात। हजारों लोगों की अकाल मौत। यदि नही ंतो क्यों नहीं तुम्हारी भुजाएं फड़क रही। क्यों नहीं तुम लामबंद हो रहे। क्यों नहीं तुम चारधाम महामार्ग का विरोध कर रहे। याद करो, मरोगे तो तुम ही। क्योंकि वहां रहते तुम हो। आते-जाते तुम हो। ये चारधाम महामार्ग बन रहा है न, यह महामार्ग तुम्हें फिर अकाल मौत की ओर ले जा रहा है। 12 हजार करोड़ भी डूबेंगे और पहाड़ भी। उफ्फ प्रकृति का इतना विनाश। देखना प्रकृति बदला लेगी। तुम सोचते हो कि विकास के लिए कुछ तो बलिदान देना होगा, लेकिन यह विकास के नाम पर विनाश और सरकारी लूट है। मैंने नरेंद्रनगर से चम्बा तक 47.2 किलोमीटर के इस महामार्ग पर देख लिया है कि प्रकृति क्यों मानव से रुष्ट होती है। जरा देखना लोग उस नेशनल हाइवे नंबर 94 को। जब टिहरी बांध बना तो यह सड़क 14 मीटर चैड़ी थी अब लगभग दस मीटर चैड़ी और कर दी गई है। किसके लिए। यहां से तो लोग धड़ाधड़ पलायन कर रहे हैं। सड़क चैड़ी की तो ठीक, लेकिन पहाड़ का सीना जिस तरह से छलनी किया गया है उससे दिल में एक ठीस उठती है। पहाड़ काट कर नंगे कर दिये गये हैं जैसे कि भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण कर दिया गया हो। पहाड़ों पर पेड़ों की हत्या हुई है, यहां के अधिकांश पहाड़ डेंजर जोन बन गये हैं। नरेंद्रनगर, भन्नू, फकोट, जिजली, खाड़ी जैसे सभी प्रमुख स्थलों पर डेंजर जोन बन गये हैं। यहां एक ओर ऊंचे और बेतरतीब ढंग से पेड़ और पहाड़ काट डाले गये हैं तो दूसरी ओर डंपिंग जोन न होने से हजारों पेड़ों की हत्या कर दी गई है। आज भी चम्बा से महज चार-पांच किलोमीटर पहले हरे पेड़ों पर आरी चल रही है। खाड़ी का बुरा हाल है। भन्नू से आगर तक कई स्थानों पर जाली से पत्थरों को रोकने की कवायद की जा रही है लेकिन यह सार्थक नहीं है। मेरा मानना है कि इस महामार्ग पर निकट भविष्य में कई लामबगड़ सिरोबगड़ और धरासू बैंड जैसे हालात होंगे। नरेंद्र नगर से पहले कई स्थानों पर बड़े-बड़े बोल्डर गिर रहे हैं और कभी भी वहां कोई बड़ा हादसा हो सकता है। कुल मिलाकर यह महामार्ग आपदा को न्योता दे रहा है। लेकिन हम सब चुप हैं, क्योंकि हमने चुप रहना सीख लिया है और झूठे गर्व से भरे हैं कि हम राष्ट्रवादी हैं। हम सीमाओं की रक्षा तो कर सकते हैं लेकिन अपने प्रदेश की नहीं। हां, सचमुच हम पहाड़ी बेवकूफ और पागल है झूठे राष्ट्रवाद ने हमारी आंखों पर उसी तरह से पट्टी बांध ली है जैसे गांधारी ने अपनी आंखों पर बांध ली थी।