- स्लोगन सेव गर्ल, स्टाॅप रेप का अर्थ नहीं समझती होंगी पर मर्म का क्या?
ये कैसी दुनिया दे रहे हैं हम अपनी बेटियों को जहां दहशत ही दहशत है।
देहरादून के नालापानी स्थित दून डिफेंस इंटरनेशनल स्कूल के नये भवन का उद्घाटन अवसर। मंच पर चार साल की समृद्धि और कनिष्का ने दो स्लोेगन वाले चार्ट पेपर पकड़े थे। एक पर लिखा था सेव गल्र्स और दूसरे पर स्टाप रेप। बहुत साधारण से पोस्टर थे और बात भी। यह एक ऐसे नाटक का हिस्सा था, जिसमें कुछ युवा जनता को यह संदेश दे रहे थे कि अब कन्या भ्रूण हत्या इसलिए भी होगी कि कोई अभिभावक नहीं चाहता कि उसकी बेटी के साथ रेप जैसा जघन्य कृत्य हो। स्तब्ध करने वाला लेकिन विचारणीय नाटक था। लेकिन यदि मंथन किया जाए तो गंभीर और विचारणीय है कि अपने बच्चों को अपने नौनिहालों को कैसा समाज और असुरक्षा का वातावरण दे रहे हैं। आखिर समाज किस ओर जा रहा है। दिल्ली की निर्भया से लेकर हैदरावाद की दिशा और उन्नाव की बेटी की अस्मत ही नहीं जिंदगी भी लील ली इस वहशी समाज ने। क्या हमारी शिक्षा में कमी है? या संस्कार नहीं बचे? या खानों में बंट गये हैं जहां हमें अपने स्वार्थ के सिवा कुछ नजर नहीं आता? आखिर हम किस तरह पाशविक समाज का निर्माण कर रहे हैं। समृद्धि और कनिष्का के सवाल भी यही हैं कि सभ्य समाज में भी असभ्यता और पाशविकता की पराकाष्ठा क्यों? क्या पुरुष होना गर्व है और महिला शर्म? जब दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, तो यह वहशीपना क्यों? क्या जो इस तरह की हिंसक और पाशविक वारदात को अंजाम देते हैं, उनका जन्म किसी महिला ने नहीं दिया? फिर ऐसा क्यों होता है? पुरुष दानव क्यों बन जाता है? जरा सोचिए?