- चैबट्टाखाल से 12 किलोमीटर की दूरी पर है यह ऐतिहासिक विद्यालय
- इस विश्वविद्यालय के प्राॅडक्ट हैं महान पीएचडी धारक और एचआरडी मिनिस्टर निशंक,
गाय आक्सीजन छोड़़ती है, के आविष्कारक महान वैज्ञानिक डा. त्रिवेंद्र सिंह रावत और गगलोड़े वाले
वैज्ञानिक डा. अजय भट्ट
देहरादून में इस बार की दिवाली जबरदस्त थी। भयंकर पटाखे छोड़े जा रहे थे, देर रात तक भी। यदि राजा राम आज वापस लौटते तो पटाखों के शोर से विचलित होकर सो नहीं पाते। मैं भी देर रात तक पटाखों के शोर से जगा रहा। रात लगभग दो बजे करीब नींद आई। नींद आते ही मैं स्वप्नलोक में विचरण करने लगा। चूंकि दिन भर सड़कों पर धक्के खाने के बाद मुझे मुश्किल से ही सुहाने सपने आते हैं, उन्हें याद करना कष्टकारी होता है लेकिन जो सपना कल रात मुझे आया वो ऐतिहासिक था। उससे मेरे दिल में उमंगे हिलोरे लेने लगी और सीना गर्व से एक-आध इंच फूल गया। जी हां, मैंने सपने में उत्तराखंड की तीन महान हस्तियों को बद्रीश विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल करते हुए देखा। ये तीनों वैज्ञानिक हैं डा. रमेश पोखरियाल निशंक, डा. त्रिवेंद्र सिंह रावत और डा. अजय भट्ट। तीनों ही बाद में बड़े वैज्ञानिक साबित हुए। एक ने तो रावण की लंका से डाक्टरेट की डिग्री ली तो एक ने आविष्कार किया कि गाय आक्सीजन छोड़ती है तो तीसरे वैज्ञानिक ने बताया कि गगलोड़े से कई बीमारियां दूर होती हैं।
सपने में मैंने देखा कि पौड़ी गढ़वाल के राठ क्षेत्र के पिनानी गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक धार में है बद्रीश विश्वविद्यालय। इसके कुलपति आचार्य नरेंद्र दामोदर मोदी हैं। इस धार तक पहुंचने के लिए अल्मोड़ा से पैदल चलकर अजय भट्ट पहुंच रहे हैं। रास्ते में उनके पेट में दर्द होता है या छाती में। बस गगलोड़े का सहारा लेकर वो बद्रीश विवि पहुंच जाते हैं। गाय आक्सीजन छोड़ती है के महान आविष्कारक वैज्ञानिक डा. त्रिवेंद्र सिंह रावत सतपुली की नयार को तैरते हुए पार करते हैं और फिर राठ स्थित इस महान बद्रीश विश्वविद्यालय पहुंचते हैं। पूत के पांव पालने में नजर आ जाते हैं, यही साबित किया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने। सपने में मैंने देखा कि आठ भाइयों से सबसे छोटे त्रिवेंद्र ने बचपन में खैरा गांव के भ्याल पर गाय चराते हुए देखा कि गाय आक्सीजन छोड़ रही है और वो गोबर की गंद सूंघ कर पता लगा लेते हैं कि गोबर में आक्सीजन है। बस, वहीं से ठान लिया था कि एक दिन जरूर आक्सीजन और गाय का संबंध स्थापित करूंगा। आखिरकार एक दिन त्रिवेंद्र का सपना साकार हो ही गया। उधर, तीन भाइयों से सबसे छोटे रमेश पोखरियाल राठ के जंगलों से बहुत डरते थे। जंगली जानवर उनके घर तक पहुंच जाते थे। बड़े भाई ने कहा कि तू बहुत डरपोक है, अपने नाम के आगे निशंक जोड़ ले। रमेश अब रोजाना तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर बद्रीश विश्वविद्यालय पहुंचता था। विश्वविद्यालय के कुलपति को निशंक, भट्ट और त्रिवेंद्र से बहुत उम्मीदें थी लेकिन सबसे ज्यादा प्यार उन्हें रमेश निशंक था। रमेश ने बचपन में तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ते हुए ही ठान लिया था कि पहाड़ में नहीं रहना। उसने सोचा, जो पहाड़ की मिट्टी में रहा, वो इस मिट्टी में ही मिल गया और जिसने जरा भी पहाड़ से दूरी बना ली वो सातवें आसमां पर पहुंच गया। रमेश की सोच ठीक निकली और अब वो सातवें आसमां पर है राठ से यह दूरी ठीक उतनी ही है जितनी इसरो मुख्यालय से विक्रम लैंडर की। सपने में मुझे बद्रीश विश्वविद्यालय का परीक्षा केंद्र नजर आया। देखा, रमेश नकल मारकर पास हो गया है और पीएचडी की डिग्री लेने के लिए रावण की लंका जा रहा है। उधर, अल्मोड़ा से गगलोडे पर लुढ़क-लुढ़क कर अजय भट्ट चांदनी चैक होते हुए नार्थ एवेन्यू पहुंच गया है। त्रिवेंद्र पूर्वी नयार तैर कर व्यासघाट से गगा में बहकर ऋषिकेश तक आ गया और हाथियों के कारिडोर को कांपते पैरों से पार करते हुए देहरादून पहुंच गया है। हाथियों का डर त्रिवेंद्र को आज भी है, इसलिए सत्ता में होते हुए भी उनका एक पैर कांप रहा है। बचपन का डर जो भरा है। कुल मिलाकर आचार्य नरेंद्र दामोदर मोदी के तीनों अनूठे उपजित शिष्य मौज कर रहे हैं। अचानक बीबी की कड़कती आवाज कि सोए रहोगे, डयूटी नहीं जाना, सुनकर नींद के साथ ही सुंदर सपना भी टूट गया।
व्यंग्य- पिनानी की धार में था विश्व का सबसे प्राचीन बद्रीश विद्यालय