... तो सच में मर गयी कांग्रेस, तेरहवीं बाकी?



जिन्दा होती तो, राजीव गांधी नवोदय पर कब्जे की बात उठाती।
- गरीब बच्चों के हक पर सरकारी डाका, खामोश हैं विपक्षी दल
- वर्चुअल क्लासेस से नवोदय विद्यालय की सुरक्षा को भारी खतरा 
वर्चुअल क्लासरूम की योजना ने राजीव गांधी नवोदय स्कूल देहरादून के गरीब बच्चों का सपना लहू-लुहान कर दिया है। श्रीदेव सुमन छात्रावास के बच्चों की डोरमेट्री तोड़कर वहां एक निजी कंपनी वैल्युबल को कब्जा दे दिया गया। है। अब केवल ग्राउंड फ्लोर पर ही बच्चे रह रहे हैं। एक डोरमेट्री में 20-20 बच्चे हैं। जबकि यहां केवल तीन टायलेट हैं। यहां सुबह के वक्त बच्चों को टायलेट जाने के लिए भी लाइन लगानी पड़ रही है। इसके अलावा उनकी पढ़ाई जो डिस्टर्ब हो रही है। सो अलग। सबसे अहम बात यह है कि सरकार ने न तो इसमें अभिभावकों की राय ली और न ही स्कूल प्रशासन या स्कूली सचिव की कुंवर की। शिक्षा सचिव मीनाक्षी संुदरम और एक अधिकारी सती की मिलीभगत से इस हास्टल पर कब्जा कर दिया गया। कहा जा रहा है कि अब ग्राउंड फ्लोर को भी खाली करवाया जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यहां छात्र-छात्राओं की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। कोई भी वाहन बिना रोक-टोक के वर्चुअल क्लास तक जा रहा है। जबकि पहले अभिभावकों को भी कैंपस में अकारण नहीं आने दिया जाता था। यहां 12वीं कक्षा की छात्रांएं भी है, ऐसे में यदि कोई अनहोनी होती है तो जिम्मेदारी किसकी होगी?
विडम्बना यह है कि इस स्कूल में वर्चुअल क्लासेस को लेकर विपक्ष ने चुप्पी साधी हुई है। प्रमुख पार्टी कांग्रेस तो जैसे मर गयी है। और उसकी तेरहवीं बाकी है। सब चुप हैं और हमारे नौनिहालों का भविष्य खराब हो रहा है। क्या करना ऐसी विपक्षी पार्टी का। गरीबों के बच्चों के इस स्कूल पर हमेशा ही सरकार की गंदी नजर रही है। पूर्व सीएम एनडी तिवारी की इस कल्पना ने सैकड़ों गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाने का काम किया है। यदि इस स्कूल का रिकार्ड देखा जाएं तो यहां से अनेकों सैन्य अफसर, आईआईटीयन, डाक्टर और वकील समाज को मिले हैं।ं इस स्कूल का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा है। इसके बावजूद सरकार की नजरें यहां कभी सही नहंी रही। सरकार कोई भी रही हो। हर सरकार ने राजीव गांधी नवोदय स्कूल की जमीन और भवनों पर अतिक्रमण किया है। पहले यहां ओपन यूनिवर्सिटी ने आठ कमरों पर कब्जा किया। इसके बाद एसईआरटी ने और अब वर्चुअल क्लासरूम ने। ऐसे में स्कूल सिकुड़ रहा है और गरीब नौनिहालों के सपनों पर प्रहार हो रहा है।