मैं हूं वर्चुअल क्लासरूम का प्रत्यक्षदर्शी प्रदेश का पहला आम आदमी 


- बाल कल्याण की आड़ में 96 करोड़ का गोलमाल
- मैंने देखी शिक्षा सचिव मीनाक्षी सुंदरम की बाल लीला 
देहरादून के नालापानी राइंका के ग्राउंड जीरो से लाइव रिपोर्ट 



दोपहर के 12.45 मिनट पर नालापानी स्कूल पहुंचता हूं। मुझे बताया गया था कि 1 बजकर 35 से कक्षा नौ को सोशल स्टडी की वर्चुअल क्लास चलेगी। स्कूल प्रिंसीपल एसके दानू के कमरे में चलकर वर्चुअल क्लास का पूछता हूं तो पता चलता है कि वर्चुअल क्लास का शेड्यूल पता नहीं। संबंधित विषय का टीचर डाइट में दस दिनों के लिए प्रशिक्षण लेने गया है। प्रिंसीपल से वर्चुअल क्लास के बारे में पूछा तो वो स्पष्टीकरण सा देते हुए कहते हैं कि इन दिनों टेस्ट चल रहे हैं तो वर्चुअल क्लास नहीं होगी। मैंने कहा, मैं वर्चुअल क्लास देखना चाहता हूं। प्रिंसिपल साब अपने एक टीचर के साथ वर्चुअल क्लासरूम की चाबी लेकर चल पड़ते हैं। मैदान के दूर कोने में आट्र्स एडं क्राफ्ट के कमरे को वर्चुअल क्लासरूम बना दिया है। कमरा खुलते ही लंबी-चैड़ी स्मार्ट स्क्रीन दीवार पर नजर आती है। स्क्रीन के ऊपर कैमरा लगा है ताकि क्लास दिख सके। खैर, जिस यूपीएस से स्क्रीन शुरू होता है उस पर गहरी धूल जमी थी। टीचर ने उसे साफ किया और कड़ाक से बटन दबा दिया। देर तक स्क्रीन पर कुछ नहीं उभरा। टीचर रिमोट के साथ छेड़छाड़ करता रहा। आखिर वर्चुअल क्लासेस रूम का स्टूडियोे नजर आने लगा। इस बीच टीचर ने देखा कि चैनल वन पर 100 तक वाॅयलूम करने के बावजूद आवाज नहीं आ रही। शुक्र है कि चैनल दो मैं एक तरफ स्टूडियो तो दूसरी ओर हम तीनों यानी मैं, प्रिंसीपल साब और टीचर नजर आने लगे। यहां आवाज भी आ रही थी। टीचर ने कार्डलेस माइक लिया और वैल्यूबल कंपनी के टेक्नीकल स्टाफ से कहा, एक पर आवाज नहीं आ रही। उधर से जवाब आया, यहीं से दिक्कत है, अभी देखता हूं। आवाज फिर नहीं आई। इस बीच लगभग 20 मिनट गुजर चुके थे और स्क्रीन पर कुछ नहीं उभरा। कुछ देर बाद स्क्रीन पर दिखाई दिया कि डेढ़ बजे से कक्षा नौ की सोशल साइंस की क्लास चलेगी और 2.30 मिनट से 2.55 मिनट तक कक्षा दस की। दस बाई दस के इस कमरे को देख मैंने प्रिंसीपल साब से पूछा, यहां कितने बच्चे बैठ सकते हैं। जवाब मिला, 30-35, वो भी तब जब स्टूल ही स्टूल है, टेबल नहंी। कक्षा नौ में कितने बच्चे हैं? मैंने पूछा। 100 हैं जी। दसवीं में 50 हैं। तो जनाब जब वर्चुअल क्लास होगी तो आधे बच्चे क्लासरूम से बाहर होंगे। 
टीचर कहता है कि हमें यहां इस स्क्रीन पर चलाने के लिए आउटसोर्सिंग कर्मी तैनात करना होगा। वर्चुअल क्लास के अलावा हमसें बहुत कुछ डाटा कंप्यूटर में मांगा जा रहा है जो कि यदि हम अपने किसी टीचर को इस काम में लगाते हैं तो बच्चों को पढ़ाएगा कौन? इस प्रोजेक्ट को चलाने वाली मुंबई की वैल्यूबल कंपनी ने कोई प्रशिक्षण नहीं दिया। केवल स्क्रीन को आन-आफ करना ही सिखाया है। प्रिंसीपल साब चिन्ता जताते हैं कि यहां की सुरक्षा कौन करेगा? वो कहते हैं कि स्कूल में आए दिन चोरी होती है। हाल में मिड-डे मील के दो सिलेंडर चोरी हो गये और पुलिस ने भी कोई कारवाई नहीं की। ऐसे में इतने महंगे उपकरणों की चिन्ता है। और उससे भी अधिक चिन्तनीय बात यह है कि छत पर जो छतरी लगी है यदि उसको ही कोई चोर चुरा ले गया या उसने सिग्नल नहीं पकड़े तो क्या होगा? उनके अनुसार अधिकांश स्कूलों में बच्चों के बैठने की जगह ही नहीं है, ऐसे में वर्चुअल क्लासरूम ने उनके लिए चुनौती खड़ी कर दी है। बेहतर होता कि सरकार पहले वर्चुअल क्लासरूम बनाती और फिर इसे शुरू करती। इस तरह से लगभग एक घंटा क्लासरूम में बिताने के बाद मुझे यही समझ में आया कि गोलमाल है भई सब गोलमाल है। जब शहर के स्कूलों में यह हाल है तो दूरस्थ गांव में वर्चुअल क्लासेस की बात बेमानी है। यह मीनाक्षी सुंदरम की बाललीला है और इसकी आड़ में फंड को ठिकाने लगाने की तैयारी है।