- देश के सबसे बेस्ट ब्रेन जेएनयू में
- आखिर देश में शिक्षा और चिकित्सा सस्ती क्यों नहीं?
यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर देश में सस्ती शिक्षा और चिकित्सा क्यों नहीं है? क्यों जेएनयू और उत्तराखंड में आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के बच्चे अधिक फीस के खिलाफ सड़क पर हैं। जब हमारे संविधान में समान नागरिक अधिकारों की बात की गई है तो फिर क्यों नहीं एक समान शिक्षा प्रणाली होती है। अमीर और गरीब के लिए शिक्षा का अलग-अलग प्रावधान क्यों? बड़ी मुश्किल से जेएनयू पहुंचे देश के आदिवासी बच्चे, दलित बच्चे, मुस्लिम समाज के बच्चे, गरीब और असहाय बच्चे जिन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए एड़ियां घिस्ी हैं, सच मानो, वो बहुत मुश्किल दौर था। और आज भी है। अधिकांश बच्चों को जेएनयू से स्कालरशिप मिलती है। पढ़ाई, हाॅस्टल और खाना सस्ता है तो इसलिए पढ़ाई जारी है। यदि आपको उनकी स्थिति जाननी है तो जेएनयू कैंपस में जाएं। उनकी बातें सुने, उनके दो जोड़ी कपड़े और चप्पलों में जीना देखें तो आपकी धारणा जरूर बदलेगी। अपवाद हर जगह होता है, जेएनयू में भी होगा। लेकिन मुट्ठी भर बिगडै़ल बच्चों की सजा सबको नहीं मिलनी चाहिए। मेरा तो मानना है कि हर राज्य में एक जेएनयू होना चाहिए, ताकि सर्वहारा वर्ग का बच्चा भी अपने सपनों को साकार कर सकें।
जेएनयू के प्राडक्ट बेस्ट ब्रेन
जेएनयू में देश के वो कोहिनूर हीरे पढ़ रहे हैं जो दुखों के फैले गहरे और काले सागर को पार कर यहां पहुंचे हैं। देश की सबसे पिछड़ी जाति व समुदाय के साथ ही पिछड़े क्षेत्र का छात्र भी यहां पढ़ने आता है। यहां योग्यता ही पढ़ाई का आधार है। ऐसे में विलासीय जीवन जीने वाले युवा यहां पहुंच ही नहीं पाते हैं। यहां का आधार ज्ञान और जूझना है। यही कारण है कि जब यहां से नोबल पुरस्कार या कोई अन्य नामी व्यक्ति निकलता है तो पूरा देश गर्व करता है। जिन लोगों को समझ नहीं है, या जो समझना ही नहीं चाहते हैं उनके लिए जेएनयू का मतलब टुकड़े-टुकड़े गैंग या कुछ भी हो सकता है। मुझे गर्व है कि जेएनयू की सभ्यता और विरासत पर। वहां की स्वतंत्रता पर और वहां के बेस्ट ब्रेन पर। ये ब्रेन वामपंथी ही नहीं विद्यार्थी परिषद और एनएसयूआई के भी हैं। विचारधारा कोई भी हो, जेएनयू ने हमें हमेशा गौरवांन्वित किया है और करता रहेगा, ऐसी उम्मीद है।
जेएनयू हमारा आधुनिक नालंदा है, इसे बचाना होगा।