- केंद्र सरकार टीएचडीसी को ठिकाने लगाने में जुटी
- 28 सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी बेचेगी सरकार
टिहरी बांध निर्माण के लिए पहाड़ की एक पूरा शहर ही नहीं डूबा था, एक पूरी संस्कृति, सभ्यता 40 किलोमीटर लंबी झील में डूबी थी। कहा जाता है कि टिहरी की झील भीलंगना और गंगा ही नहीं बल्कि यहां के लोगों के आंसुओं से भरी है। यह आंसू आज भी झील में डूबे शहर को याद कर अनायास ही लोगों की आंखों में आ जाते हैं। केंद्र सरकार अब विकास के नाम पर ली गई टिहरी शहर की जान की कीमत लगा रही है और इसे निजी हाथों में बेच दिया जाएगा। सबसे अहम बात यह है कि सरकार लाभ में चल रही टीएचडीसी को बेच रही है क्योंकि उसे अपने दूसरों खर्चों की भरपाई करनी है। इसका सीधा सा अर्थ है कि पानी हमारा, संसाधन हमारा, मैनपावर हमारा और लाभ विदेशी या निजी कंपनी को। क्या इसलिए ही हमने एक पूरी सभ्यता को झील में डुबो दिया ताकि एक दिन इस पर किसी निजी कंपनी का कब्जा हो?
मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों का परिणाम है कि हम रिजर्व बैंक का पैसा भी गंवा चुके हैं और देश आज आर्थिक दिवालियापन की कगार पर खड़ा हो चुका है। वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने कह दिया है कि मार्च तक 28 सार्वजनिक उपक्रमों को बेच दिया जाएगा और इससे 17 हजार 364 करोड़ रुपये जुटा लिए जाएंगे। यह विडम्बना है कि देश की नंबर एक नवरत्न कंपनी कंटेनर कॉरपोरेशन में 30 फीसदी हिस्सा बेचने को मंजूरी दी गई है। जिन कंपनियों में सरकार अपनी हिस्सेदारी को बेचने जा रही है, उनमें प्रमुख तेल मार्केटिंग कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) भी शामिल है। इसके अलावा भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल), कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) और शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया शामिल हैं। कंटेनर कॉरपोरेशन में 30 फीसदी हिस्सा बेचने को मंजूरी दी गई है। केंद्र सरकार नीपको में अपनी हिस्सेदारी को एनटीपीसी को बेचने जा रही है।
आओ टिहरी को याद कर रोएं, और फिर टीएचडीसी के लिए रोएं