- रिटायर्ड अश्वनी त्यागी और प्रो. एलबी वर्मा को क्या जरूरत सड़क पर उतरने की?
आज जेएनयू और आयुष छात्रों के समर्थन में उत्तराखंड के विभिन्न संगठनों ने देहरादून के गांधी पार्क में धरना दिया। इस धरने में 70 वर्षीय कमला रावत और 65 वर्षीय सुमित्रा रानाकोटि भी शामिल हुई। दोनों ही अनपढ़ महिलाएं हैं। कमला रावत से पूछा कि कभी आप स्कूल गयी हो। वो हंसते हुए बोली, नहीं, साइन करने सीखे थे वो भी गडबड़ हो गये। कमला रावत के दो लड़कियां और तीन लड़कें हैं। तीनों ही लड़के बेरोजगार हैं। वह कहती है कि अच्छी और सस्ती शिक्षा एक बड़ी जरूरत है। जब पुलिस ने दिल्ली में छात्राओं को लाठियों से पीटा तो रहा नहीं गया और धरने पर आ गयी। सुमित्रा रानाकोटि के एक बेटा और बेटी हैं। बेटा प्राइवेट नौकरी कर रहा है। आंदोलनकारी सुमित्रा के अनुसार 1994 के राज्य आंदोलन से ही वे जागरूक हुईं हैं और जहां भी जुल्म होता है तो वो उसके विरोध में सड़क पर आ जाती हैं।
कमला और सुमित्रा दोनों ही अफसर कालोनी में रहती हैं और दोनों ही पिछले 25 वर्ष से सड़क पर आंदोलन की साझीदार हैं। डोईवाला से धरने में शामिल होने वाले अश्विनी त्यागी सरकारी सेवा से रिटायर हो चुके हैं। वे कहते हैं कि एचआरडी मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक का वहां आयुर्वेदिक कालेज हैं। तीसरे साल की पढ़ाई में पहले वर्ष की फीस मांगी जा रही है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रो. लाल बहादुर वर्मा का कहना है कि यह मुद्दा महज फीस बढ़ोतरी का नहीं है। यह विरोध शिक्षा विरोधी नीतियों का है। यह लड़ाई है और इस लड़ाई से ही तय होगा कि हमारे नौनिहालों का भविष्य कैसा होगा?
आखिर अनपढ़ बुजुर्ग सुमित्रा और कमला क्यों जेएनयू के समर्थन में धरने पर बैठी?